मुस्लिम वोटरों में नया ट्रेंड...एनडीए और महागठबंधन में किसको फायदा
पटना: बिहार चुनाव को लेकर एक नया सर्वे आया है, जिसमें राज्य के सभी 9 प्रमंडलों के मतदाताओं की मंशा पकड़ने की कोशिश का दावा किया गया है। मोटे तौर पर समझें तो इस सर्वे का नतीजा यही है कि बिहार में इस बार भी आखिरकार जातीय गणित और दोनों प्रमुख गठबंधनों के समीकरण से ही परिणाम तय होने वाला है। अलबत्ता, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने चुनावी मुकाबले को दिलचस्प जरूर बना दिया है और जिसकी वजह से कुछ हद तक अभी एक अनिश्चितता की स्थिति महसूस हो रही है। लेकिन, इस सर्वे में बिहार के मुस्लिम वोटरों में जरूर एक खास ट्रेंड दिख रहा है और जिस तरह से एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में मोर्चा खोला है, यह चुनाव बहुत चौंकाने वाला भी हो सकता है।
बिहार के 9 प्रमंडलों में सर्वे
Ascendia 'बैटल ऑफ बिहार 2025' सर्वे बिहार के सभी 9 प्रमंडलों में किया गया है। इसका मोटा अनुमान यही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन के स्थापित वोट बैंक के इधर से उधर होने का बहुत ज्यादा अनुमान नहीं है। इस सर्वे के मुताबिक चुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के तीसरी शक्ति के रूप में उभरने की संभावना है। लेकिन, उनका प्रभाव उत्तर बिहार में उतना नजर नहीं आ रहा है, जितना की दक्षिण बिहार में है।
मुस्लिम वोटरों में नया ट्रेंड
बिहार की करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी परंपरागत तौर पर आरजेडी की वजह से महागठबंधन की समर्थक रही है। लेकिन, 2020 के चुनाव में ओवैसी की एआईएमआईएम ने सीमांचल में इस वोट बैंक में सेंध लगा दी थी, जहां मुसलमानों की जनसंख्या आधे के करीब है। फिर भी लगभग 75 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों ने महागठबंधन का साथ दिया और 17 प्रतिशत ओवैसी के चेहरे पर झुक गए। लेकिन, 2024 में करीब 83 प्रतिशत मुस्लिम वोट महागठबंधन के खाते में चले गए। ताजा सर्वे में यह ट्रेंड दिखा है कि वैसे तो अभी भी ज्यादातर मुस्लिम वोटर महागठबंधन को सपोर्ट कर सकते हैं, लेकिन इस समुदाय में गठबंधन को लेकर एक असंतुष्टि का भाव भी दिख रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' में प्रमुख मु्स्लिम चेहरों को प्रमुखता नहीं देना है। सर्वे का अनुमान है कि मुस्लिम वोटरों में यह असंतुष्टि खासकर सीमांचल इलाके में महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है। इस बार मुसलमान महागठबंधन से ज्यादा टिकट और उपमुख्यमंत्री पद का वादा भी चाहते हैं। ऐसे में ओवैसी की सक्रियता से विपक्षी गठबंधन की परेशानी और ज्यादा बढ़ सकती है।
ओबीसी वोट में विभाजन तय
बिहार में ओबीसी की जनसंख्या लगभग 25 प्रतिशत है। इनमें सबसे ज्यादा आबादी वाले यादव अभी भी आमतौर पर आरजेडी के पक्ष में लामबंद दिख रहे हैं। लेकिन, गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं के बीच एनडीए का पलड़ा भारी है। इनमें कोइरी और कुर्मी प्रमुख जातियां हैं। हालांकि, कोइरी या कुशवाहा को लेकर अनुमान है कि इनके वोट बैंक का एक हिस्सा महागठबंधन की ओर भी झुक सकता है, जैसा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में हो चुका है।
किस क्षेत्र में किसका दबदबा?
सर्वे में तिरहुत, दरभंगा, सारण, कोसी,पूर्णिया मगध, मुंगेर, पटना और भागलपुर प्रमंडलों के अलावा भोजपुर क्षेत्र को अलग से शामिल किया गया है। इस सर्वे का अनुमान है कि महागठबंधन को मगध और भोजपुर में कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है, लेकिन पूर्णिया में उसकी सीटें बढ़ सकती हैं। 2020 के चुनाव में एनडीए को इनमें से सात क्षेत्रों में बढ़त मिली थी और महागठबंधन तीन में आगे रहा था। तब एनडीए को कुल 243 सीटों में से 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं।
किधर जाएंगे अति पिछड़े?
बिहार में पिछले कई चुनावों से अति पिछड़ों (EBCs) का झुकाव एनडीए की ओर रहा है। इनकी आबादी लगभग 26 प्रतिशत है। ताजा सर्वे के अनुसार इस बार भी यह एनडीए के पक्ष में झुक सकते हैं। हालांकि, अगर महागठबंधन की ओर से इस वर्ग के लोगों को टिकट देने में दिल खोला गया तो इस वोट बैंक में स्विंग नजर आ सकता है।
दलित वोटर किधर?
इस सर्वे के अनुसार बिहार की करीब 20 प्रतिशत दलित (अनुसूचित जाति) आबादी में एनडीए का दबदबा कायम है। बिहार में दलितों में मुख्य रूप से तीन जातियां प्रभावी हैं- जाटव या राम (5 प्रतिशत), पासवान (5 प्रतिशत) और मुसहर (3 प्रतिशत)। इनमें से पासवान और मुसहरों का झुकाव एनडीए की ओर अब भी कायम है। लेकिन, जाटव या राम का झुकाव महागठबंधन की ओर हो सकता है। सर्वे के अनुसार इस जाति के वोटरों में यूपी के नगीना के आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर रावण के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है।